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रसज्ञ-रञ्जन
 

हूजियेगा। कहीं आप उस पर यह इलजाम लगाने की चेष्टा न कीजियेगा कि यह तो बोलती नहीं—इसने जो कुछ पहले कहा था सब बनावटी था। नहीं ऐसा नहीं है। यह कह कर उसने दमयन्ती की नल-सम्बन्धिनी वे सब बातें कह सुनाई, जो उसने नल-प्राप्ति की कामना से, समय-समय पर कही थी। उनसे सिद्ध किया कि नल पर दमयन्ती का स्नेह कितना प्रगाढ़ है।

इस प्रकार भीमात्मजा दमयन्ती की सारी रहस्य पूर्ण बातें सुन कर, अपने सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए, नल ने वहाँ से प्रस्थान किया। दमयन्ती के महल से चल कर नल शीघ्र ही पूर्वोक्त दिक‍्पालों के सामने उपस्थित हुआ और उसने अपने दूतत्व की सारी बातें यथातथ्य कह सुनाई। सुन कर देवताओं के चेहरों का रङ्ग फीका पड़ गया।

प्रातःकाल वे सब दमयन्ती के स्वयंवर मे पहुँचे। अपने कौटिल्य का जाल बिछाने में उन्होने वहां भी कसर न की। उन्होंने विषम विघ्न उपस्थित कर दिया। नल का रूप धारण करके वे वहाँ जा बैठे! परन्तु अपने सतीव्रत के बल से उन विघ्न-बाधाओं को पार कर के दमयन्ती ने अन्त में नल के कण्ठ में वरण-माल्य पहना ही दिया। अपनी भक्ति से उसने उन देवताओं को यहाँ तक प्रसन्न कर लिया कि नल को उसकी वकालत का मिहनताना भी, वर-प्रदान के रूप में देना पड़ा।

 

समाप्त