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52 . बच्चों का हित लिपटा रहता है । स्वार्थ-परता पर प्रेम को विजय होतो है, पति को अहभाव के ऊपर उठना पड़ता है। उसकी सत्ता का प्रयो- जन अव से दूसरो को वर्तमान भलाई और भविष्य आनन्द में ही है ।' --मतिरामग्रथावली की भूमिका पृ० ७ | एक प्रकार से और इस विपय को देखिये। जिसका शृगार किया जाता है, वह उत्तम, उज्ज्वल और दर्शनीय बन जाता है। यह शृगार चाहे प्रकृति करों से किया गया हो, चाहे मनुष्य जाति द्वारा। शरद मयंक, समुज्ज्वल राका रजनी, अनत तारकावलि, विलसित नोलनभो- मंडल, लोकरंजिनी अरुणरागारजिता ऊषा, हिम धवल गिरिशृग अणो, हरित-दल-विभूषित पादपावली, अनंत सौंदर्य निकेतन विकच कुसुम समूह, विचित्र चित्रित विहंग वृद और नाना रंग आकार के चमत्कारमय कोट-पतग किसको विमुग्ध नहीं बनाते, किसके लोचनों को नहीं चुराते और किसके हृदय को आनंदित नहीं करते। मानव जाति के बनाये ससार के अनेको मदिर, सहस्रो स्तभ, कितने ही 'पिरामिड', वहुत से पुल, लाखो पुष्पोद्यान, असख्य विलास-मंदिर, करोड़ों बाग- बगीचे, अनेक मूर्तियाँ और खिलौने, इतने साफ सुथरे सुंदर, मनोहर और देखने योग्य हैं कि उनकी जितनी प्रशसा की जाय वह थोड़ी है। ये समस्त विश्व-विभूतियाँ पवित्र इसलिये हैं कि उनका दर्शन निर्दोष है और वे लोकोत्तर आनंदसदन हैं। यह शृगार का माहात्म्य है। जव इस शृगार को रसत्व प्राप्त हो जाता है, तो सोना और सुगध की कहावत चरितार्थ होती है, उस समय वास्तव में मणिकाञ्चन योग उपस्थित होता है निर्जीवप्राय सजीव बन जाता है और स्वर्ण कलस रवि-किरण-कात ।। क्या इन बातो पर गभीरता पूर्वक विचार करने पर यह नहीं स्वीकार करना पड़ता कि शृगार रस की पवित्रता और महत्ताओ के विपय में जो कथन किया गया, वह मत्य और युक्तिसंगत है।