. संस्कृत के तत्संबंधी ग्रंथो से ही लिये गये है। मैं भी उन ग्रंथों के ही उदाहरण श्राप लोगो के सामने उपस्थित करूंगा। यह अवश्य है कि मैन उन्हों नाटक अथवा काव्य-ग्रंथो को लिया है, जिनका अनुवाद हिदी भाषा में हो चुका है। प्राशा है, इससे विपय के समझाने में अमुविधा न होगी। ५-ग्स का प्रस्थान में विस्तार या विच्छेद करना. बार बार उस उहीन करना-अकांड मे अथवा अनवसर रस का विस्तार करना- जेमा वेणीसहार नाटक के दूसरे अक मे किया गया है। जिस समय युद्ध छिडा हुआ था और अनेक कौरव वीरगति को प्राप्त हो रहे थे, उस समय दुर्योधन का भानुमती के साथ शृगार-रस-संबंधी विस्तृत वाती- नाप कराया गया है। स्थान में विन्छेद-इसका उदाहरण महावीरचरित मे मिलता है- विवाद के श्रवनर पर जिस समय परशुराम और रामचंद्र श्रावेश- पूर्ण थे. और वाद उग्र रूप धारण किये हुए था, उस समय कंकणमोचन के लिये रामचंद्र को बुलाकर विवाद का अंत कराया गया-यही स्थान अथवा प्रकांड-विच्छेद है। रस का बार-बार उद्दीप्त करना । जैसा कुमारसंभव मे रति-विलाप के समय कगया गया है। इस विलाप मे करुण रस को बार-बार उद्दीप्त करने की चेष्टा की गई है-चतुर्थ गर्ग के २६ वे श्लोक तक रति का विलाप चलता है। इसके उपरांत उसके याश्वासन के लिये वलंत आता है। उसे देख रति का शोक और बढ़ता है। दो ग्लोक मे यह दिवलाकर कवि फिर पति के विलाप को प्रारंभ करता है जो ३८ वें 'लोक तक चलना है। एक बार विलाप को समाप्त करके उसको फिर उहीन किया गया है. अतण्व इसको दाप माना है। मेरा विचार है कि इनमे रस का परिपाम हुआ है. उसमें दोप नहीं पाया किंतु यह एक
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