. . वादिको से अभिव्यक्त हुए रस को उसका नाम लेकर वर्णन कर दिया जावे, वहाँ कौन दोप होता है, तो उत्तर यह है कि व्यंग्य को वाच्य बना देने से सभी व्यंग्यो मे 'वमन' नामक दोप होता है। पहले तो हुई सामान्य दोप की बात । पर रसो का जिस रूप में आस्वादन किया जाता है, वह प्रतीति वाच्यवृत्ति (अभिधा) के द्वारा अर्थात उन रसो का नाम लेने से उत्पन्न नही हो सकती । अतः जहॉ रसो का वर्णन हो, उस स्थल पर ऐसा करना वंदर की सी चेष्टा है; जो अपने घाव को ठीक करने के लिये खोदकर और बिगाड डालता है। इसी तरह स्थायी भावो और व्यभिचारी भावो को भी अभिधा शक्ति के द्वारा वर्णन करना अर्थात् उनके नाम ले लेकर लिखना दोप है। -हिंदी रसगगाधर (पृ० १३९)। ३-विरोधी रसो के अंग-भूत विभाव अनुभावादिको का वर्णन करना तीसरा दोप है यथा-- 'मान करत कत कामिनी है यौवन दिन चार' । यौवन का क्षणिक वर्णन शांत रस का अग है, वह उसका उद्दीपन विभाव है, जो शृंगार रस का विरोधी है, अतएव शृंगार-रस में इस प्रकार का कथन सदोप है। ४-विभाव और अनुभाव का कठिनता से आक्षेप हो सकना। प्रयोजन यह कि जो वर्णन ऐसा हो जिसमें विभाव-अनुभाव का निर्देश कठिनता से हो सके, जिसके विभाव-अनुभाव का निश्चय होना दुम्नर हो तो वह वर्णन भी दोपयुक्त माना जावेगा- हँसत कलानिधि को निरखि मद मद मुनुकाति । अवलोकहु नवलावधू नयन नचावन जाति ।। इस पद्य में कलानिधि का उद्दीपन विभाव और नवल वचू का श्रालंबन विभाव होना स्पष्ट है, किंतु अनुभाव का श्राप उसमे सुग- मता से नहीं किया जा सकता और यही इस पद्य का रस-दोप हिदय में रस का विकास उसी समय यथार्थ रीति से होता है, जब उसकी
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