क्योकि ऐसा करने से, जिस रस का वणन किया जा रहा है, उसकी शोभा वैरी का विजय कर लेने के कारण अनिर्वचनीय हो जाती है। रन के बाधित किये जाने का अर्थ यह है कि विरोधी रस के अंगो के प्रबल होने के कारण, अपने अगो के विद्यमान होने पर भी रस की अभिव्यक्ति का रुक जाना। अर्थात् किसी रस के अभिव्यक्त होने की सामग्री के होने पर भी, दूसरे रस की सामग्री के प्रबल होने के कारण, उसके अभिव्यक्त न होने का नाम है, रस का वाध्य होना।" -हिंदी रसगंगाधर (पृ० १३७)। रस-दोष रस-दोप का वर्णन काव्यप्रकाशकार और साहित्यदर्पण के रचयिता ने कविता-गत टोपो के साथ किया है, कितु रसगगाधरकार ने उसको रस के हो निरूपण मे लिखा हैं। मैं भी इस विचार से इसका वर्णन यहॉ करता हूँ कि जिसमे रस-सवधी सब बाते इस प्रकरण में आ जावें। साहित्यदर्पणकार ने निम्नलिखित रस-दोप बतलाये है। यही सम्मति काव्यप्रकाशकार की भी है- रसस्योति स्वशब्देन स्थायिसचारिणोरपि ॥ परिपथिरसागस्य विभावादे परिग्रह । आक्षेप कल्पित कृच्छादनुभावविभावयो । अकाण्डे प्रथनच्छेदी तथा दीप्ति पुन पुन । अगिनोऽननुसधानमनङ्गस्य कीर्तनम् ॥ अतिविस्तृतिरङ्गस्य प्रकृतीना विपर्यय । अर्थानौचित्यमन्यच्च दोपा रसगता मता ॥ ये सब रस के दोप हैं- (१) किसी रम का उसके वाचक पद से अर्थात सामान्यवाचक रम शब्द से या विशेषवाचक शृगारादि शब्दो से कथन करना । च
पृष्ठ:रसकलस.djvu/७७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।