४२ 7 इसलिये बाद को हास्य भी एक रस माना गया। क्रोध में आकर यदि कोई किसी को प्रहार कर बैठता है, अथवा किसी को लगती किंवा कटु बातें कहता है, तो वह व्यथित अथवा आहत हुए बिना नहीं रहता, उसके हृदय मे शोक भी उत्पन्न हो जाता है, और वह अपने दु.खों का वर्णन कर के रोने कलपने लगता है, यही करुण रस है, जो रौद्र रस का कार्य है । इसीलिये करुण रस की उत्पत्ति रौद्र रस से मानी गई है। इसमे भी स्थायिता और व्यापकता है, अतएव धीरे-धीरे यह भी रस में परिगणित हो गया। यह कौन नहीं जानता कि वीर के कार्य प्राश्चर्य- जनक होते है, वीरपुगव अजनीनदन ने, महापराक्रमी भीष्मपितामह ने महाभारत विजयी धनजय ने जो वीरता के कार्य कीये हैं वे किसको चकित नहीं बनाते । महाराणा प्रताप, वीरवर नैपोलियन के वीरकर्म भी लोक विश्रुत हैं, और सब लोग इनको अद्भुतकर्मा कहते हैं। इस- लिये वीरता के कर्मों को अद्भुत रस का जनक माना गया है। रणभूमि को रक्ताक्त देखकर, मन्ना मेद मास को जहाँ तहाँ खाते-पीते नुचते अवलोकन कर, कटे मुडो पर बैठ काको को ऑखे निकालते, गीधा को अतडिया खींचते, शृगालों को लोथ घसीटते और कुत्तो को हड्डियाँ चवाते देख किसके हृदय मे भय का संचार न होगा। इसीलिये बीभत्स दर्शन से भयानक की उत्पत्ति मानी गई है। मेरा विचार है इस विपय मे जो सिद्धांत महामुनि भरत और अग्निपुराण के हैं, वे युक्तिसंगत और उपपत्तिमूलक हैं। जैसे पहले चार रस, फिर आठ रस की कल्पना हुई, वैसे ही काल पाकर नवॉरस शात भी स्वीकृत हुआ । यद्यपि तर्क वितर्क इस विषय में भी हुए, परन्तु श्राजकल अधिक सम्मति से नव रम ही माने जाते हैं। रसगंगाधरकार लिखते हैं- 'येरवि नाट्ये,शान्तो रसो नास्तीत्यभ्युपगम्यते तैरपि बाधकाभावान्महाभार- तादि प्रबन्धाना शान्तरसप्रधानतया अखिललोकानुभवसिद्धत्वाच्च काव्ये सोवऽश्य .
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