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३५६ रस निरूपण शांत स्थायी भाव-शम अथच निर्वेद देवता-शांतिमूर्ति विष्णु वर्ण-कुंद-पुष्प-कांति समान शुक्ल बालंबन-संसार की असारता और अनित्यता का ज्ञान, परमात्मा के सत्य स्वरूप का अनुभव। उद्दीपन-सद्गुरु प्राप्ति, सत्सग, पवित्र श्राश्रम, पवित्र तीर्थ, रमणीय एकांत बन, सच्छास्त्र अनुशीलन, श्रवण मनन श्रादि । अनुभाव-रोमाच, पुलकावली, अश्रु-विसर्जन आदि । संचारीभाव-धृति, मति, हर्ष, स्मरण, प्राणियों पर दया आदि । विशेष काम क्रोधादि शमन पूर्वक निर्वेद की परिपुष्टता को शात कहते हैं, इसका आश्रय उत्तम पात्र है। . असार संसार मनहरण कवित्त- मिलि . धूरि मैं धरा-धर धरा-तल हूँ काल कर सागर - सलिल को उलीचिहै। बड़े बड़े लोक - पाल विपुल विभव - वारे पल मैं विलहैं ज्यों बिलाति बारि-वीचि है।