३४१ रस निरूपण दिवि हैहै अदिवि धनाधिप बराक हैहै सकल विभूति अ-विभूति पद पावैगी। सुर हहै असुर सुराधिप-समन ह है काम - धेनु सारी कामधेनुता गॅवावेगी। कहै 'हरिऔध' एरे हिंदू कुल के कलंक जाति कॉहिं तेरी कूट नीति जो कॅपावेगी। ज्वाल-माला ह है तो मयंक-कला केलि-मयी तोको कल्प वेलि कल्प कल्प कलपावैगी ।।८।। तेरो नाम सुने नाक नीचता सिकोरि लैहै तेरो मुख देखे महा-पातक सिहरि है। पामरता पै है यम-यातना परसि तोहि लोक-कालिमा को कलंकित तू करि है। 'हरिऔध' कहत पुकारि जाति बैरी सुन जाति बैर-विरद वहॅकि जो तू बरि है। गौरव तिहारो तो अगौरव-बिभूति ह है कौरव-समान तू हूँ रौरव मैं परि है ||६|| कैसे भला हिंदुन को कबहूँ अकाज हो तो हिंदू है अहिंदू काज जो न करि जातो तू । भीर क्यो परति क्यो भभरि-हित भागि जात नाना वैर-भावन ते जो न भरि जातो तू । 'हरिऔध' जाति तो अकटक न कैसे होति कंटक-समान पंथ तें जो टरि जातो तू। गरि जावो सरि जातो कतहूँ निकर जातो जरि जातो वरि जातो जो पै मरि जातो तू॥१०॥
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