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३०६ रस निरूपण वीर-रस स्थायी भाव-उत्साह देवता-महेंद्र वर्ण-कनक-काति-निम-गौर आलंबन विभाव-रिपु अथवा रिपु का विभव एव ऐश्वर्या श्रादि । उद्दीपन विभाव-रिपुचेष्टा, उसकी ललकार, मारू-वाद्य, रण-कोलाहल, फरखा गान आदि। अनुभाव-अंग-स्फुरण, नेत्र की अरुणिमा, युद्ध के सहायक उपादान- धनुष आदि की खोज, सैन्य-संग्रह आदि । संचारी भाव-गर्व, असूया, उग्रता, धैर्य, मति, स्मृति, तर्क आदि । - विशेष किसी किसी ने इद्र को इस रस का देवता माना है। रस के प्रायः चार मेद माने गये हैं। १-धर्मवीर, २-युद्धवीर, ३-दानवीर, ४-दयावीर । मेरा विचार है कि पांच कर्मवीर भी माना जाना चाहिए। धर्मवीर वेद-शास्त्र के वचनों और सिद्धातों पर अचल श्रद्धा और विश्वास आलं- बन, उनके उपदेशों और शिक्षाओं का श्रवण, मनन आदि उद्दीपन विभाव. तदनुकुल आचरण और व्यवहार अनुमाव एवं धृति, क्षमा आदि धर्म के दश लक्षण संचारी मात्र हैं। धर्मवीर में धर्म-धारण और धर्म-सपादन के उत्साह की पुष्टि है। .