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२८६ रस निरूपण कहूँ है मसान कहूँ सरग विराजमान कोऊ विहसत कोऊ वेत लौं हिलत है। 'हरिऔध' विधि - करतूति बहु - रंगिनी है कहूँ राग - रंग कहूँ हियरा छिलत है। कतहूँ अराजक, है राजत स्वराज कहूँ कोऊ राज लेत कोऊ रज मैं मिलत है ।।४।। आगि लगि जाति है जवासन के तन मॉहि विदहत अरक - दलन अवलोके हैं पी पी कहि वारि पी न सकत पपीहरा है पवि के प्रहार हूँ रुकत नॉहि रोके हैं। 'हरिऔध' पावस मैं निसि तम-तोम मॉहि वरत प्रदीप पादपन पै विलोके हैं। बारिद वहावत सुधा है वसुधातल पै वरसत मोती मंजु - मारुत के झोके है ॥ ५ ॥ हंस को गयंद औ गयंद हंस होत हेरे रंभा के सु - खंभ वारिजों पै गये रोके हैं। चंपक की कलित - कलीन मॉहि तारे मिले भुजग कलभ - कर मॉहि अवलोके हैं। 'हरिऔध' मंजुल जपा • दल वनत लाल गहब गुलावन पै मोती गये लोके हैं। कंजन मैं ललित - लुकंजन लसत देखे बिधु मैं चपल युग - खंजन विलोके हैं ॥ ६ ॥ अनुकूल रहि प्रतिकूलता करहिं नित वचन - रसाल कहि बींचि लेत खाल हैं।