२६७ रस निरूपण दाहत सीतल देह होत दुलहिया अखियन बिरह - अगार। की जलधार ॥ ७॥ ९-जड़ता अगों तथा मन के चेष्टाशून्य होने और इन्द्रियों की गति के अवरोध को जड़ता कहते हैं। उदाहरण कवित्त-- पतिया छुये ही काहें छतिया छिलन लागी गात छोरि गई क्यों छवीली-छबि छलकें। क्यों है छरि गई क्यों छलावा मैं परी लखाति छूटे केस, क्यों हैं छटा-हीन मंजु अलकै । 'हरिऔध' कहा भयो कौन सी वही है बायु काहें लोप भई लोक लोभनीय-ललक। वोलि बोलि के हूँ का सकति न बोलि वाल खोलि खोलि के हूँ काहे खोलति न पलकें ।। १ ।। सवैया-- चंपक को लता चारु रही नहिं क्यों कुभिलात है वेलि चमेली। काहें भई चकि के जकि कै छकि कै छन में नव-चाल दुहेली। ए'हरिऔध' बिलोकतही पतिया क्यो भई तिय को तलवेली। काहे न खोलति है अखियान को बोलति काहे नहीं अलवेली ।।२।। दोहा-- पर की कही नहीं सुनत अपनी कहति न बात । तिय है पाहन है गई किधौं भयो पवि-पात ॥३॥
पृष्ठ:रसकलस.djvu/५१४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।