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२१ किसके साथ होने से, परस्पर होने से अथवा किसी अन्य के साथ होने से। मेरा विचार है, नीचे के वार्तिक मे उन्होने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है। उक्त सूत्र लिखकर वे स्वयं प्रश्न करते हैं-को दृष्टान्त . इसका क्या दृष्टान्त है ? फिर स्वयं उत्तर देते हैं- 'यथा हि-गुडादिभिव्यञ्जनोपधिभिश्च पाडवादयो रस निवर्तन्ते, तथा नानामावोपगता अपि स्थायिनो भावा रसत्वमाप्नुवन्तीति । जिस प्रकार गुड़ादिक द्रव्य व्यंजनो और श्रीपधियो से विविध प्रकार के पानक रस बनते हैं, वैसे ही अनेक भावो से युक्त होकर स्थायी भाव भी रसत्व को प्राम होते हैं। 'नानाभाषोपगता अपि स्थायिनो भावा रसत्वमाप्नुवन्तीति' का 'स्थायिनी भावाः' किस भाव का व्यंजक है ? इसी भाव का कि विभाव, अनुभाव और संचारी भावो का जव स्थायी भावो से संयोग होगा, तभी रस की उत्पत्ति होगी। रस किस मे और कैसे उत्पन्न होता है, इस बात का निर्णय नहामुनि भरत ने अपने उल्लिखित सूत्र में स्पष्टतया कर दिया है। कितु उसके अर्थ मे ही मतभिन्नता हो गई, इसलिये विवाद कुछ दिन और 'चला, भट्ट लोल्लट आदि विद्वानो ने कहा- यह स्वीकार कर लिया जाता है कि विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति आदिक स्थाची भाव को रमत्व प्राप्त होता है। किनु यह रति आदिक भाव किनके होते हैं ? उन लोगो का कथन है कि चे रति आदिक भाव नाटक-पात्रो के होते हैं. गहे वह नायक नायिका हो. अथवा कोई और अपेक्षित पात्र । यहाँ यह प्रश्न होगा कि वे पात्र तो अति के गर्भ में होते हैं. अथवा कल्पना-संसार में विचरण करते रहते हैं, उनके रति श्रादिक स्थार्या भावो से दर्शक समुदाय कैसे प्रभावित होगा ओर यदि प्रभावित नहीं होगा, तो उनके करुण. निर्वेद, हास्य और यानदादि का क्या हेतु होगा? बे लोग कहते हैं, अभिनेतायो पर वे उन पात्रो का आरोप कर लेते हैं, अर्थान् वेष-भूषा और कार्य-कलाप द्वारा 3 . 7