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२२७ अनुभाव दोहा- कहा भयो कत बावरी तेरो मुख पियरात । कत पीपर के पात लौ थर थर कॉपत गात ॥ २ ॥ स्वर-भंग स्वाभाविक ध्वनि में विकार होने को स्वर-भंग कहते हैं। उदाहरण सवैया- घिरे नभ मैं धन घूमत हे 'हरिऔध' हुती सब ओर वहार | बिचार कियो अस चाव-भरो चित गाइये मंजुल - राग-मलार । इतै अलवेली अलाप कियो उतै आइ गये ब्रजराज - कुमार । भयो सुर मंग निहारत ही उतरथो मनो वाजत बीन को तार ॥१॥ वैवर्य शरीर की काति में अंतर पड़ने को वैवर्ण्य कहते हैं। उदाहरण सवैया- अवै आई बिनोद - भरी मुसकात भयो यह बीच ही कैसो दई । 'हरिऔध' सों धाइकै को कहो इतनो यह जात हैं काहें तई । नित ही वन - कुंजन आवती हैं बजी बॉसुरिया हूँ न आज नई । अरी कौन-सी पीर भई पल मैं मो परोसिनी जो परि पीरी गई ।।१।। अश्रु कारणविशेष से नेत्रों से जल-पात होने का नाम अश्रु है ।