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१६१ उद्दीपन-विमाव उदाहरण उत्तमा - दोहा- तेरे जैसे नहिं सुने मधुर - रस - मरे बैन । ऐसे काके कमल से बड़े बड़े हैं नैन ।।१।। कवित्त- बिबस बनाइ बारनादिक बिहंग हूँ को बनचर बानरादि हूँ को बहरावै है। विटप औ बल्ली हूँ बिमोहि बिलमावै बारि बहत बयार हूँ की गति विरुझाव है। 'हरिऔध' बूझि देखै बैगुन बिलोक कहा बावरी जो ब्रज बनितान को वनावै है। विबुध बरूथ बिबुधेस विधि हूँ को वेधि बीर बनमाली बन बाँसुरी बजावै है॥२॥ मध्यमा दोहा- कामैं ऐसी सरसता कहूँ मिल्यो नहिं भावती तो सम मृदुल-स्वभाव ।।१।। कामैं ऐसो भाव। अधमा दोहा- -- अपनावत हो रहत हैं मोहि लेत हैं मोल । मेरे लोयन मैं बसे तेरे लोयन लोल ॥१॥