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आनंद का समुद्र उमड़ पड़ा। अनेक भावुक भक्तजनों की तल्लीनता बढ़ गई, और वे परमानंद-पयोधि में ऐसे मग्न हो गये कि सब कुछ भूल गये। कभी वे शिर हिलाते, कभी झूमते, कभी वाह-वाह करते और कभी युगलमूर्त्तियों की छवि को एकटक देखते रह जाते।

इस दृश्य में भावुक भक्तजनों की रति स्थायी भाव है, क्योंकि रसत्व उसको ही प्राप्त है। भगवान् रामचंद्र और श्रीमती जानकी आलम्बन-विभाव हैं, क्योंकि उनकी रति अर्थात् प्रेम के आधार वे ही है, और वे ही उसको विभावित करते हैं। तरंगायमान स्वरलहरियो का प्रसार, भाव-मय रामायण की चारु चौपाइयों का गान, युगलमूर्त्तियों का श्रृंगार आदि उद्दीपन विभाव हैं, क्योंकि वे ही रति के उद्दीप्त करने के कारण है। भक्तजनों का शिर हिलाना, झूमना आदि अनुभाव हैं, क्योंकि वे ही रति-भाव के बोधक हैं। उत्सुकता और उत्फुल्लता आदि संचारी हैं, जो रति-भाव में समय-समय पर संचरण करके उसको उत्तरोत्तर वर्द्धित करते रहते है। स्थायी भाव के कारण को विभाव, कार्य को अनुभाव और सहकारी को संचारी भाव कहते हैं। मैं समझता हूँ, जो उदाहरण मैंने उपस्थित किया है, उससे यह बात भली भाँति समझ में आ गई होगी। फिर भी इसको और स्पष्ट किये देता हूँ। भक्तजन के स्थायी भाव रति के कारण-भूत कौन है? युगलमूर्त्ति और उनके श्रृंगारादि। अतएव आलम्बन और उद्दीपन विभाव दोनों इसमें आ गये। रति के कार्य उनमें किस रूप में प्रकट हुए, झूमने और एकटक अवलोकन करने आदि में, ये ही अनुभाव है। रति को अपने कार्य में किससे सहायता मिलती रही उत्सुकता और उत्फुल्लता आदि से, ये ही संचारी भाव है। इसलिये विभाव का कारण, अनुभाव का कार्य और सहकारी का संचारी होना स्पष्ट है।

रसास्वादन प्रकार

श्राप लोगो को इसका अनुभव होगा कि रामलीला के दृष्यों का