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रसकलस - 'हरिऔध' प्यारे-संग करन पयान ही में आपनी भलाई पापी प्रान हूँ परखै ना। विलखि बिलखि भरि भरि बार बार बारि नैनहूँ निगोरो आज नैन भरि देखै ना ।।१।। आगतपतिका प्रियतम-विदेशागमन से उत्फुल्ल स्त्री को आगतपतिका कहते हैं। उदाहरण मुग्धा दोहा- सुनि मुख ते सखियान के पिय को श्रावत ऐन । पड़े पलक के पाँवड़े ललकन लागे नैन ॥शा आये लाल विदेस ते ललना भई निहाल । अनुरंजित - चित - रुचि कहत रोरी - रंजित - भाल ||२|| मध्या दोहा-- सुने कंत को श्रागमन उमड़यो उमग - पयोद । ललना - युगल - नयन लगे वरसन बारि - विनोद || प्रीतम आये पौर 4 भई देखि बहु भीर । छकी पै सकी तोरि नहिं लोक - लाज - जंजीर ।।२।। बरवा आवत जानियलवा पकरि कपाट । कामिनि खरी अटरिया जोहति वाट ||३|| ग्रोहा कवित बार बार प्यार ते विलोके चद-मुख-चार फेर मैं परे से अंधकार मेरे ही के हैं।