रसकलस १३४ - चाव सों एक को आइ गह्यो उमड़े धन को झर लावत जोही। एक सों भाख्यो विलासिनि यों किन भीजत आइ बचावत मोही ।।१।। ५-अनुशयाना सकेत-स्थल के नष्ट होने से सतप्त रमणी को अनुशयाना कहते हैं। इसके तीन भेद हैं-१-सकेतविघट्टना (वर्तमान ), २-सकेतनष्टा (भावी) तथा ३-रमणगमना (भूत)। संकेतविघट्टना वर्तमान सकेत-स्थल नष्ट होने से दुःखित ललना को सकेतविघटना कहते हैं। उदाहरण दोहा- कहा भयो जो है गई लता-बिहीन निकुंज । घर समीप विलसत अहैं अजौं घने-तरु-पुंज ॥१॥ सूने-सदनन के नसे चूर भयो कत चित्त । वहु-विहार-उपवन अहैं अजौं बिहार-निमित्त ॥ २ ॥ संकेतनष्टा दोहा- कत सिसकति हहै उतै रसिक-जनन ते भेंट । है तेरी ससुरारि मैं सुंदर सजे सहेट ॥ १ ॥ सखि ससुरे मैं सैर की अहै असुविधा नाहि । उत अभिमत-फल-दायिनी-बहु-फुलवारी आहि ॥२॥ रमणगमना सकेत स्थल में प्रियतम के गमन का अनुमान कर जो स्त्री अपनी अनुपस्थिति पर तत होती है उसे रमणगमना कहते हैं। कवित्त- आलिन को आनन विलोकि अकुलानी महा केला के झमेला मिले कुफल करेला के
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