रसकलस १३० उदाहरण सवैया- मोको बिलोकत ही अपने मन में सुख मानि महा-उमगानी । आसन दीनी समादर कै मुख बोलि हरे हरे मंजुल-बानी । सील के पेचन मॉहि परी 'हरिऔध' सनेह सनी सकुचानी । प्यारे तिहारी प्रमोद भरी पतिआ पढिकै पुलकी पतिवानी ॥१॥ परकीया के छः भेद व्यवहार और कार्य कलाप संबंध से परकीया छः प्रकार की होती है। १-गुप्ता, २-विदग्धा, ३-लक्षिता, ४-कुलटा, ५-अनुशयाना और ६-मुदिता । १-गुप्ता पर-पुरुष-विहार-सबधी क्रिया को गोपन करनेवाली परकीया गुसा कहलाती है। वह तीन प्रकार की होती है-१-भूतगुप्ता, २-वर्तमानगुप्ता और ३-भविष्यगुप्ता। भूतगुप्ता भूतकालिक विहार गोपन करनेवाली भूतगुप्ता कहलाती है । उदाहरण दोहा- भाग जगावन काज मैं मॉगन गई भभूत । कहाँ करौं भोरे - जनन कॉहि भिन्यो जो भूत ।।१।। सुनत हुती मैं रसिक-जन हुतो सरस बतरात । मोहि क्लंकित करि कहति कत कलक की बात ॥२॥ वर्तमानगुप्ता वर्तमानकालिर विहार गोपन करनेवाली वर्तमानगुप्ता कहलाती है ।
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