यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसकलस ११४ - सवैया- चचलता ही न आनि ठनी कछु होन लगी अॅखियान सो चूको । वीर बनाव-सिंगार हूँ मैं अनुराग भयो सो लखात बधू को । पी 'हरिऔध' को वात चेले पगि लाज मैं लागी बिलोकन भू को । चोज सो ऊँचे उरोजन हेरि लखै लगी रोज सरोजन हूँ को ।।१।। ज्ञातयौवना के भेद ज्ञातयौवना के दो भेद हैं-१-नवोदा और २-विश्रब्धनवोढा । नवोढ़ा लजा और भय के आधिक्य से जा पति का ससर्ग नहीं चाहती, वह नायिका नवोदा कहलाती है। उदाहरण दोहा इत उत दौरि दुरति रहति दूरहि ते वतराति । पिय तन - छाँह वनन चहत तिय लखि छाँह सकाति ||१|| बरवा- करि चतुरैया चाहत पकरन वॉह । नहिं सकत छयलवा पै तन - छॉह ।।२।। विश्रव्धनवोढ़ा रति में अल्प अनुराग और पति में कुछ विश्वास जिसे हो जाता है उस नायिका को विश्रधनवोढ़ा कहते हैं। उदाहरण सवैया- प्रीतम को गुन जानै नहीं तबहूँ सुनि नाम लजान लगी है । कानन को 'हरिऔध' कही रस की बतिया हुँ मुहान लगी है।