बेहज रूयज़ेवास्त आवाजे खुग।
कि ई इज़्जे नफसस्तवीं कृत रूह।
सुन्दर मुख से मधुर ध्वनि कही उत्तम है। वह आनंदित करता है और इससे प्राणों की पुष्टि होती है। जिस समय बाजे मधुरता से बजते रहते हैं क्या उस समय वे उन्मादक नहीं होते? क्या कामिनी-कंठ लोगो पर जादू नहीं करता? बालको के कंठ की कूक क्या स्वर्गीय सुधा नहीं बरसाती? मुरलीमनोहर की मुरली क्या पादप एवं लताबेलियों तक को स्तम्भित नहीं करती थी? श्रीमद्भागवतकार लिखते हैं—
वनचरो गिरितटेषु चरन्तार्वेगुनाह्वयति गाः स यदा हि।
वनलतास्तव आत्माने विष्णु व्यञ्जयन्त्य इव पुष्पफलाढ्याः। ::प्रणतभारविटपा मधुधाराः प्रेमह्वष्टतनवः ससृजुः स्म॥
—श्रीमद्भागवत, १०/३५/८, ९
भगवान् जब वन में प्रवेश कर पहाड़ में विचरनेवाली अपनी गायों को वेणु बजाकर बुलाते हैं तब पुष्प-भारनम्र लताएँ अपनी आत्मा में परमात्मा का अनुभव करती हुई स्नेह से परिपुष्ट हो तरुसमूह के साथ फूल-फल से मधुधारा को वर्षा करने लगती है। कविवर सूरदासजी क्या कहते हैं उसे भी सुनिये—
सुनहु हरि मुरली मधुर बजाई।
मोहे सुर नर नाग निरतर ब्रज बनिता सब धाई।
जमुनातीर प्रवाह थकित भयो पवन रह्यो उरभाई।
सग मृग मीन अधीन भये सब अपनी गति बिसराई।
द्रुमवल्ली अनुरागु पुलक तनुससि क्यों निसि न घटाई।
यूरस्याम वृदावन विहरत चलहु चलहु सुवि पाई॥
यदि भगवान् श्रीकृष्ण की मुरली के विषय में कुछ 'इदं कुतः' हो और उसके वर्णन को रंजित समझा जावे तो लोक की घटनाओं पर ही दृष्टि डाली जावे। क्या नट की तुमड़ी का नाद सुनकर सर्प बिमुग्ध