१८४ , है, वालक इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। एक उत्फुल्ल बालक को देखिये, इस मधुर नाम की सार्थकता उसके प्रत्येक उल्लास से हो जावेगी। बालकों की इस आनंदमयी मूर्ति का चित्रण अनेक भावुक कवियों ने बड़ी ही मार्मिकता से किया है । इस रससमुद्र में जो जितना ही डूवा, वह उतना ही भाव-रल सचय करने में समर्थ हुआ । एक अंग्रेज सुकवि की लेखनी का लालित्य देखिये । वह लिखता है- I have no name : I am but two days old', What shall 'I call thee ? 'I happy am, Joy is my name.' 'Sweet joy befall thee ! Pretty Joy ! Sweet joy, but two days old, Sweet Joy I call thee : Thou dost smile sing the while, Sweet joy befall thee !! W. Blake. मेरा नामकरण अभी नहीं हुआ है, मैं दो दिन का बच्चा हूँ। तो हम तुमको क्या कहकर पुकारें ? मैं मूर्तिमान् उल्लास हूँ, मेरा नाम शानद है । तो तुमको मधुरतर आनद प्राप्त हो । मेरे प्रियतर प्रानद | मेरे मधुरतर आनंद ! मेरे दो दिन के प्यारे बजे तुमको मधुर मे मधुर आनद प्राप्त हो । नुम मधुर हेंसी हमा, मुसकुरायो, मैं भी स्वर्गीय गान प्रारंभ करता -भोले-भाले बचे, तुमको अधिकाधिक आनद प्राप्त हो ! बालभायों का चित्रण करने मे, उनके श्रानंद और उल्लासों के
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