. लगता है। परंतु किसमे शक्ति है कि आज की इस आवश्यक बहक को धता बता सके । आज जो इसके सामने पड़ेगा, उसीका कचूमर निकल जावेगा। जो इससे टकरायेगा वहीं चूर-चूर हो जायेगा। स्त्री-स्वतंत्रता के पक्ष और विपक्ष में इन दिनो कुछ पत्र-पत्रिकाओ मे ऐसे गंदे लेख निकल रहे हैं, कि अगला समय होता, तो कोई उनको अपनी बहू-बेटियो को छूने भी न देता । परन्तु आजकल वे पत्र-पत्रिकाएँ मूल्य देकर मॅगाई जा रही हैं और आदर के साथ कुलांगनाओ को अर्पण की जा रही हैं। कारण इसका सामयिक प्रवाह और वर्तमान काल का उत्तेजित मनो- भाव है। इस यमय उनका विरोध करना, असफलता को निमंत्रण देना है। यह समय न रहने पर और प्रचलित आंदोलनो का दोष प्रकट होने पर ही उनके दुर्गुणो का यथार्थ ज्ञान हो सकता है । चाहे जो हो, इस समय इन बातो के कारण हिदी-साहित्य कितना कलुषित हो रहा है, यही प्रकट करना, इन विषयों की चर्चा का उद्देश है। आशा है, मेरे भावों के समझने मे भूल न की जावेगी। मैंने जो कुछ लिखा है, उसका मतलब उचित आंदोलन की निदा नहीं है । सुधार- संबंधी अथवा देशोद्धार मूलक जितने आंदोलन ईमानदारी से सच्चे लोगो के द्वारा हो रहे हैं, न तो वे निदनीय हैं, न आक्षेप योग्य । बाल- विवाह का विरोध अथवा विधवा-विवाहादि का जो प्रचार मर्यादित रीति से किया जा रहा है, वह सर्वथा अनुमोदनीय है । मैं स्वयं उनसे सहानु- भूति रखता हूँ। मैंने निंदा की है मंडाचार की, और उस प्रणाली की जो घृणित भावो से भरी है। मैंने बुरा कहा है, उन लोगो को जो बनते हैं सुधाकर परन्तु हैं राहु, जो वेप रखते हैं साधु का, परन्तु हैं कालनेमी। जो आर्य-संस्कृति के शत्रु हैं, किंतु सुधार के बहाने उसके मित्र वनते है । मेरा लक्ष्य उस नीति की कदर्थना है, जिसके अधार से पाश्चात्य दुर्गुण, सद्गुण के रूप मे गृहीत हो रहे हैं , और विजातीय भाव समाहत होकर जातीयता को ठोकरे जमा रहे हैं। जो मेरे भाव को न समझकर व्यर्थ n
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