१८० . . लता की भरमार होती है, ओर निर्लज्जता को हो पराकाष्ठा । इसी प्रकार शिक्षा दोष अथवा नवीन सभ्यता के ससर्ग से जो दुर्व्यसन और चरित्र गत कुसस्कार छात्रो, मास्टरो, एव नव शिक्षितो में प्रतिदिन वर्द्धनोन्मुख हैं, समाज के प्रबन्धको के आचार-व्यवहार से जो निंदनीय बाते देश मे फ़ैल रही हैं, असयत, उच्छृ खल, और ढोगियो के प्रपचों से जो बुराइयाँ जाति में स्थान पा रही हैं, रंगे सियारो और नाम के नेताओ के कारण जो अपकार हिंदुओ का हो रहा है उनका वर्णन आजकल जिन शब्दो मे होता है, जिस प्रकार उनका खुला चिट्ठा जनता के सामने रखा जाता है, जैसे उनके कुत्सित कार्यों का पर्दाफाश किया जाता है, उसकी अधिकाश प्रणाली भी बड़ी ही घृणित और हेय है। परतु सुधार का उन्माद ओर जातिगत एव व्यक्तिगत हुप इन बातो के विच रन का अवसर ही नहीं देते । लेखनी हाथ मे आने पर पेट का कुल मल बाहर निकाल देने में ही चैन आता है, चाहे पत्र के कालम कितने ही कलकित क्यो न हो जावें । जी की कुड़न अश्लील से अश्लील वाक्यो मे ही निंदनीयो को स्मरण करती है, चाहे वे नरक-कुड भले ही बन जाये। जो सञ्च और ईमानदार होते हैं उनका भापण परिमित होता है, और उनकी लेग्यमाला मर्यादित । पर से लोग कितने है ? अधिकतर ऐसे ही लोग दुनियाँ मे देखे जाते है, वे हवा का झग्य देखकर चलते है और पेट पालने के लिये, चार पैसा कमाने के लिये, अपना मतलब गॉठन के लिये, दिल की कसर निकालने के लिये. या मूठमूठ की वाहवाही लूटने के लिये कुछ मे कुछ बन जाते है । वे लोग अपना कच्चापन अथवा नकली भाव छिपाने के लिये अपनी बानो को इतना गजित करते हैं, उनमे इतना नमक-मिर्च लगाते हैं कि असलीयत गवे के सीग की तरह गायब हो जाती है। ये बाने यदि हजी की. निदा की अथवा भड. पन की होती हैं. नो वे उनी इन कारवाइयों में इतनो निदनीय बन जाती हैं, कि मृर्तिमान बीभत्स अकांड ताइब उनमे दृष्टिगत होन . .
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