१५८ मिहासन पर विराजमान हैं। उनके विषय में उनके सप्रदाय वालों और सस्कृत के कुछ प्रधान प्रथों ने जो लिखा है, वह तो उनको सर्व लोकों से उच्च गोलोक की अधिष्ठातृ देवी और जगदबिका बतलाता ही है, कितु नव शिक्षा-दीक्षा दोक्षित लोगों ने वर्तमान काल में उनके विषय में जो लिखा है, वह भी उनकी महत्ता का पूर्ण द्योतक है-बंगभापा ओ साहित्य- कार वाचू दोनेशचद्र सेन बी० ए० अपने ग्रंथ के पृष्ठ २४४ में यह लिखते हैं- "अपूर्व प्रेम और भक्ति के उपकरण से श्रीमती राधिका सुदरी निर्मित हैं, वे प्रायशा अथवा कुदनंदिनी नहीं हैं जो उनके विरहजन्य कष्ट की एक कणिका वहन कर सके, अथवा उनके सुख-समुद्र की एक लहरी धारण करने में समर्थ हो, इस प्रकार का नारी चरित्र पृथ्वी के काव्योद्यान में कहाँ है।" बग प्रांत के प्रसिद्ध विद्वान् और लेखक श्रीयुत पूर्णचद्र वमु अपने 'साहित्य चिंता' नामक ग्रथ में श्रीमती राधिका के विषय मे यह लिखते हैं- "आर्यों के भक्ति शास्त्र में एक और भी आदर्श प्रेम है, राधा उस प्रेम की प्रतिमा हैं, गोपियाँ उम प्रेम की सहचरी हैं। राधिका मधुर गोपिका-प्रेम का प्रकृष्ट निदर्शन हैं। पति-पत्नी का प्रेम जहाँ तक उन्नत हो सकता है, उस उन्नतावस्था को राधिका का प्रेम पहुंचकर कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण हो गया था। इसीसे इस भक्ति का नाम प्रेमा- भक्ति है। दाम्पत्य प्रेम की परिपूर्णता को भगवदर्पण करना ही इसका उद्देश्य हे, क्योकि भगवान ही प्राणवल्लभ हैं। राधिका और गोपियों के अतिरिक्त और कोई नहीं कह सकता कि भगवान् हमारे प्राणवल्लभ है। सत्यभामा ने ऐसा कहा था, पर राधिका-प्रेमी कृष्ण ने उनका यह दर्प चूर्ण कर दिया था। सत्यभामा का प्रेम दर्पित भक्ति का रूप था, वह राधिका की आत्मसमर्पण कारिणी प्रेमाभक्ति की तुलना नहीं कर सकता। नक्मिणी की भक्ति मे प्रेम की मधुरता दाम्पत्य प्रेम की मधुरता मे मिल 66
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