१५७ अनुमोदनीय नहीं। कुछ ऐसी ही रचनाएँ ब्रजभाषा में भी है। श्रीमती राधिका का पद बहुत ऊँचा है, उनको वही गौरव प्राप्त है, जो किसी लोकाराधनीया ललना को दिया जा सकता है। भगवान् श्रीकृष्ण यदि लोक-पूज्य महापुरुप है, तो श्रीमती राधिका सर्वजन आहता रमणी। वे यदि मृतिमान् प्रेम है, तो ये मूर्तिमती प्रेमिका । वे यदि विष्णु के अवतार है, तो ये है लक्ष्मी स्वरूापणी । वे यदि है देवादिदेव, तो ये है साक्षात् स्वर्ग की देवी। अपने सच्चे प्रणय और निस्वार्थ प्रेम के कारण ही उनके नाम को भगवान् श्रीकृष्ण के पवित्र नाम के प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। कहा जाता है, श्रीमद्भागवत मे उनका नाम नहीं, रामानुजाचार्य ने भी ईश्वरीय युगल मूति की कल्पना के समय उनका स्थान रुक्मिणी देवी को दिया, इसलिये उनको अथवा उनके नाम को वह महत्ता नहीं प्राप्त होती, जो अन्य देव- विभूतियो को मिलती है। भागवत मे भले ही उनका नाम न हो, कितु ब्रह्मवैवर्त पुराण के कृष्ण-खंड और खिल हरिवंश पर्व में उनका नाम मिलता है। महात्मा विष्णु स्वामी और निम्बार्काचार्य ने राधा नाम की प्रतिष्ठा की है, महाप्रभु बल्लभाचार्य ने भगवान् श्रीकृष्ण की उपासना के साथ श्रीमती राधिका के स्वर्गीय प्रेम.का प्रचार भी किया है ! स्वामी हित हरिवश ने तो राधा-बल्लभी एक संप्रदाय ही बना डाला, जिसमे उन्होंने उन्हीं को सर्वाराध्या वतलाया। चैतन्यदेव स्वयं मूर्तिवान् राधा थे, उन्होंने श्रीमती राधिका के उदात्त प्रेम का जो आदर्श उपस्थित किया वह अभूतपूर्व है । बंग कवि चंडीदास, मैथिल-कोकिल विद्यापति, पीयूपवर्षी महापुरुप जयदेव और प्रज्ञाचक्षु महाकवि सूरदास ने जिस विश्वव्यापी म्बर मे श्रीमती राधिका का गुणगान किया, वह लोक विश्रुत है। उत्तरीय भारत और गुजरात के लक्षाधिक मंदिरो मे भगवान श्रीकृष्ण के साथ श्रीमती राधिका को मृति आज भी प्रतिष्ठित है। लगभग सहस्र वर्ष से वे करोड़ों हिंदुओं के भक्ति-मंडित हृदय
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