१४६ -> सकती है । यदि परकीया एक सत्य व्यापार है, और समाज में चिरकाल से गृहीत है, तो उसका उल्लेख गर्हित क्यों ? हिंदू समाज का वरन् संसार का सर्वोच्च आदर्श स्वकीया है। परंतु उसके नीचे ही परकीया का स्थान है, उसका प्रेम भी उदात्त है, और एक प्रेमी ही तक परिमित है। उसमें त्याग की मात्रा भी न्यून नहीं, उसके प्रेम-पथ में विघ्न वाधाओं के ऐसे दुरारोह पर्वत खड़े मिलते हैं जिनका सामना स्वकीया को करना ही नहीं पड़ता, तो भी वह अपने व्रत में उत्तीर्ण होती है, और प्रेम-कसौटी पर कसे जाने पर उसी के समान ही ठीक उतरती है, फिर उसकी अवहेलना क्यों ? परकीया नायिका में जो प्रेमजन्य व्याकुलता होती है, उसमें जो अधोरता उन्सुकता, प्रेमोन्माद और तड़प देखी जाती है, वह बडी ही अदम्य एव वेदनामयी होती है। पहाड़ी नदियो की गति में बड़ी प्रखरता, बडी ही सवलता, बड़ा वेग और बड़ी ही दुर्दमनीयता होती है, क्योकि उसके पथ में विघ्न बाधा स्वरूप अनेक प्रस्तर खड, अनेक सकीर्ण मार्ग और बहुत से पहाड़ी दरे होते हैं। परकीया नायिकाओं का पथ भी इसी प्रकार विपुल संकटाकीर्ण होता है। उसको लोक-लाज की बेडी काटनी पडती है, वंशगत बधन तोड़ना पड़ता है, गुरुजनो की भर्त्सना, गॉववालों का उत्पीड़न और सखियो का तिरस्कार सहना पड़ता है, अतएव उसकी गति भी पहाड़ी नदियों की सी उद्वेलित होती है । इसके हृदय के भावों का चित्रण टेढी खीर है, माथ ही बड़ा प्रोजमय द्रावक और मर्मस्पर्शी भी है। उसमें सत्यता है, सौंदर्य है, और है प्रेम-पथ का भीषण दृश्य । उसमें वह अटलता है जो हथेली पर सर लिये फिरनेवालों में ही देखी जाती है। प्रत्येक भापा की लेखनी का चमत्कार इस भाव के प्रदर्शन में देखने योग्य है, वह माहित्य को एक अपूर्व सम्पत्ति है। थोड़े-से पद्य आप लोगों के अवलोकन के लिये यहाँ उपस्थित किये जाते हैं। .
पृष्ठ:रसकलस.djvu/१६१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।