१३० देखी आपने आर्य-बाला की मर्यादाशीलता और शिष्टता? साधा- रण हास विलास और क्रीड़ा में भी वह पति को अपना चरण स्पर्श कराना पाप समझती है। पति के खा पी लेने पर खाती पीती है, उसके सो जाने के बाद सोती है, और प्रातःकाल उसके उठने के पहले उठ जाती है। वह नगजड़ी चौकी इसलिये हृदय पर धारण नहीं करती कि कहीं परपुरुप की छाया उस पर पड़ने से उसके स्त्री-धर्म में छूत न लग जावे । संभव है, आजकल इस प्रकार के विचारों में अत्युक्ति की गंध पाई जावे, और इनमें वास्तविकता न मिले । परंतु ऐसे ही सर्वाभिमुखी, देशव्यापी, एव पवित्र आदर्शों के द्वारा ही दांपत्य भावों की महत्ता सुरक्षित एवं परिवर्द्धित होती आई है। इन कविताओं की व्यजना कितनो भावमयी और उदात्त है, इसके लिखने की आवश्यकता नहीं । पाश्चात्य स्त्रियाँ अपने स-बूट चरणों को पतिदेव के युगल हाथों पर रखकर घोड़े पर से उतरने मे ही अपना गौरव समझती हैं, हास विलास और आहार विहारादि में स्वतत्रता ग्रहण कर अन्यों के साथ स्वच्छंद विचरने में ही स्वाधीनता सुख का अनुभव करती हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश में भी उनका अनुकरण होने लगा है। किंतु स्मरण रहे, मायिकता से सरलता अहमहमिकता से मानवता, कटुता से मधुरता एव उछंखलता तथा मदावता से सदाशयता सदा श्रेष्ठ मानी गई है, वह सदा श्रेष्ठ रहेगी भी, क्योकि महान गुण से ही महत्ता प्राप्त होती है । नायिका भेद की रचनाओं में स्त्री पुरुष के अनेक स्वकीय विचारो एव भावो का भी बड़ा सुंदर चित्रण है। उनमें ऐसे जीते जागते चित्र हैं कि हृदयो पर अद्भुत प्रभाव डालते हैं। स्त्री पुरुष की प्रकृतियों एवं व्यवहारों में धीरे-धोरे कैसे परिवर्तन होते हैं, किस अवस्था में उनके कैसे विचार होते हैं, उन विचारों का परस्पर एक दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ता है। स्त्री पुरुष के संबंधों में कैसे कटुवा कैसे मधुरता आती है, जीवन यात्रा के मार्ग में कैसे कैसे रोड़े हैं, प्रेम-पथ कितना "
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