११८ X रातों को जो गिनती थी सितारे । दिन गिनने लगी खुशी के मारे । करती थी जो भूख प्यास बस में। आँसू पीती थी खा के कसमें ॥ सूरत में खयाल रह गई वह । हेयत में मिसाल रह गई वह ॥-नसीम एक परकीया की बातें सुनिये- उड़ गई यों वफा जमाने से । कभी गोया किसी में थी हो नहो ॥ गुल है जखमी बहार के हाथो । दिल है सदचाक यार के हाथो । दम बदम कता होती जाती है । उम्र लैलो निहार के हाथो । इक शिगूफा उठे है रोज नया । इस दिले दागेदार के हाथों ॥-हसन एक मुग्धा का चित्र देखिये- कुछ जवानी है अभी कुछ है लड़कपन उनका । यों दगाबाज़ों के कबजे में है जोबन उनका ।। -असीर x X कमसिनी है तो निराली हैं ज़िदें भी उनकी । इस पै मचले हैं कि हम दर्दे जिगर देखेंगे । -फसाहता एक रूपवती नायिका के सौंदर्य का वर्णन यों किया गया है- आया जो वह गुल चमन में । फूले न समाये पैरहन में || दो पद्य विच्छित्तिहाव के देखिये-जहाँ साधारण वेप-रचना से शोभा बढ़ती है-वहाँ विच्छित्ति हाव होता है- है जवानी खुद जवानी का सिँगार । सादगी गहना है इस सिन के लिये। शोखी वेबाकी मुक्नतिजा सिन का । नाक में फक्त सींक का तिनका ॥अमीर एक धृष्ट नायक की बाते सुनिये-देखिये श्राप कितने वेदहल हैं- दिल मुझसे लिया है तो ज़रा बोलिये हँसिये। चुटकी में मसलने के लिये दिल नहीं होता ॥ ऐ चश्मेयार देख तगाफुला से बाज़ आ । दिल टूट जायगा किसी उम्मेदवार का॥ -अमीर -
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