११७ कलहांतरिता-जो प्रिय से कलह करके पश्चाताप करतो है उसे कलहांतरिता कहते हैं- . I loved him not; and yet, now he is gone, I feel I am alone, I checked him while he spoke; yet could he speak, Alas ! I would not check. मैं उसे चाहती नहीं थी, पर अब वह चला गया है, तो मुझे बिल- कुल सूना लगता है । जब वह बोलता था तब तो मैंने उसे रोक दिया। परंतु अव यदि वह आ जाय और वोले, तो मै उसे नही मना करूँगी। फारसी और अरवी में भी ऐसे विचारो की कमी नहीं है, परंतु उनके पद्यों को उठाकर मैं इस लेख को बढ़ाना नहीं चाहता । उर्दू मे उन दोनो भापाओ के हो विचार भरे पड़े हैं, इसलिये कुछ उर्दू के ही इस प्रकार के पद्य आप लोगो के सामने रखू गा। यह स्पष्ट है कि उक्त भापात्रा मे माशूक श्राम तौर से अमरद होता है, इसलिये उसकी शायरी में स्त्रियो के भावो का प्रदर्शन बहुत कम है। फिर भी इस प्रकार के विचारो का अभाव नहीं है। मसनवियो मे और यो भी ऐसे विचार मिल जाते है। उन्हों मे से कुछ नीचे लिखे जाते हैं। संस्कृत मे मुझको नखशिख वर्णन कम मिला। मेरा विचार है कि हिदी मे यह प्रणाली फारसी और उर्दू से आई है। हिदी मे पहले-पहल नख-शिख-वर्णन 'पद्मावत' मे मिलता है, जो ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी का लिखा है। यह निश्चित है कि उन्होंने फारसी के 'सरापा' वर्णन का हो अनुकरण अपने ग्रंथ मे किया है। इसलिये इस विपय मे फारसी उर्दूवाले तो हिदीवालो से भी आगे हैं। फिर भी उनके इस तरह के कुछ विचारों को देखिये । एक विरहिणी अथवा प्रोषितपतिका का वर्णन गुलजार नसीम मे यो किया गया है-
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