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११० रवमेते काव्यरसाभिव्यक्ति हेतव एकोनपचाशद्भावाः प्रत्यवगतव्या. । एभ्यश्च सामान्यगुणयोगेन रसा निष्पद्यते।" आठ स्थायी भाव, तैंतीस व्यभिचारी भाव और आठ सात्विक भाव मिलकर ४६ भाव होते हैं, काव्य में रस अभिव्यक्ति के हेतु वे ही होते हैं । इन्हीं से सामान्य गुण योग द्वारा रस बनते हैं। यह लिखकर उन्होंने सब का पूर्ण वर्णन किया है और बडे विस्तार से बतलाया है कि अभिनय के समय उनको कैसे काम में लाना चाहिये। यद्यपि नाट्य-शास्त्र में इनका वर्णन अभिनय के लिये ही हुआ है, कितु पीछे इनका उपयोग श्रव्य-काव्य मे भी आवश्यकता के अनुसार किया गया। नायिका-भेद के ग्रथों में नायिका तीन प्रकार की मानी गई है, यह कल्पना भी नाट्य-शास्त्र से ही ली गई है-उसके २२वें अध्याय मे लिखा गया है- सर्वासामेव नारीणां त्रिविधा प्रकृति. स्मृता । उत्तमा मध्यमा चैव तृतीया चाधमा स्मृता ॥ प्रकृति के विचार से स्त्रियाँ तीन प्रकार की होती हैं-उत्तमा, मध्यमा और अधमा। इसी अध्याय में एक दूसरे स्थान पर आठ प्रकार की नायिकायो का वर्णन है, वे भी इसी रुप में यथातथ्य नायिका-भेद के ग्रथो मे ले ली गई हैं-वे ये हैं- तत्र वासकसज्जा वा विरहोत्कठितापि वा। खडिता विप्रलब्धा वा तथा प्रोपितमर्तृका ।। स्वाधीनपतिका वापि कलहांतरितापि वा। तथाभिसारिका चैव इत्यष्टौ नायिका. स्मृता. ॥ इसी अध्याय में काम की दश दशाओं का उल्लेख यो किया गया है- प्रथमे त्वभिलाप स्याद्वितीये चिंतनं वेभत् । अनुस्मृतित्तृतीये तु चतुयें गुणकीर्तनम ||