विभाव. अनुभाव. सब भेदा महित होता है, और इसी कारण इसे रस- गज कहते हैं। -पृ० ३३४५ प्राचार्य केशवदास कहते हैं- नवहे रस को भाव बहु तिनके भिन्न विचार | सय को सबदास कहि नायक है सिंगार |-रसिकप्रिया। कविपुंगव देव कहते हैं- भूलि कहत नव रस मुकवि सकल मल सिंगार -कुशलविलास । कविवर पद्माकार कहते है- नव रस मे मिगार रस तिरे कहत मब कोय ।-जगद्विनोद । भाजदेव अपने शृंगारप्रकाश नामक ग्रंथ मे लिखते हैं - शृगारवीरकरणाइतदात्यरौद्रबीभत्सवत्सलभयानकगांतनाम्न । आभासिपुर्द गरमान् नु धियं वदति शृगारमेव रमनाद्रसमामनाम ॥ नार. वीर. करण. श्रत, हास्य, गैद्र, बीभत्स. वत्सल, भयानक और शांत नामक दम रम बुद्धिमानों ने बतलाये हैं. किन्तु अान्बादन पर द्रष्टि रखकर गार हो ग्म माना जा सकता है। प्रकृतिवादकार शृगार को श्राद्य रस बतलाते हैं. कविपुगव देव की मम्मति यह है कि मव ग्मा का मूल शृगार है. अतएव लगभग दोनो का एक ही सिद्धांत है । मैंने भी रस निरूपण मे अग्निपुराण के आधार से यह प्रतिपादित किया है कि या रस शृंगार ही है. और सब रसो को उत्पत्ति इनी से हुई है, अतण्य श्रृंगार रम का प्राधान्य स्पष्ट है । कामदेव को गाग्चोनि और शृगारजन्मा कहते हैं, इसलिये काम का उन्पादक गार है, वह स्वीकार करना पड़ता है। माहित्यदर्पणकार की भी सम्मति यही है. पहले के पृष्ठों में इसको चर्चा हो चुकी है। सृष्टि का सृजन काम पर ही अवलंबित है. मी अवस्था में भी सव सो मे गार को ही प्रधानता प्राप्त होती है। 1 1
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