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रश्मि रेखा प्रिय । लो, डूब चुका है सूरज प्रिय ! लो डूब चुका है सूरज ना जान कब का वचन तुम्हारा भग हुआ है क्या जान कब का ? साँध्य-मिलन के आश्वासन पर काटीं घड़ियां दिन की बड़े चाव से हममे जोही बाट साझ के छिन की दिन की मेष विलास वेदना किसी तरह सह डाली इसी भरोसे कि तुम साझ का आओगे बनमाली । सध्या हुई अधेरा गहरा हुआ मेघ मडराए गहन तमिस्रा ने आकर झींगुर-नूपुर झनकाए अब भी आ आओ देखो ता कितनी सुदर बेला अधकार लोकोपचार को डाक चला अलबेला पथ पकिल है कि तु शून्य है नहीं जगजन-मेला अधियाले में खडा हुआ है मम मन भवन अकेला ऐसे समय पधारो साजन | छोड भरम सब का देखो डूब चुका है सूरज ना जाने कब का ।