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रश्मि रेखा (२) इतमी रस श्यता दानवी जग-जीवन में कैसे आई ? गालामुखियों की ये लपटें जग-मग में किसने भडकाई ? पढा सृजन का पाठ प्रकृति ने । अह भावना तब उठ धाई अरे उसी क्षण से कण कण में मृषा तृषा अह आन समाई। फैले अनहंकार भावना मिटे सकुचित सीमा अन्तर इस सूखे अग जग मरुथल में ढरक बहो मेरे रस निझर ! आज शिंजिनी आमापण की चढे जाए जीवन अजगव पर अध्व लक्ष्य-धन हित छुट बलिदानों के नित नव नव शर कतुमय अमृत-कुम्भ विध जाये जब हो इन बाणों की सर-सर शत सहस्र मधु-रस धाराए परस उठे सहसा झर झर कर हो शवलित वसुधा अलम्भुषा। मुदमय तृय कर उठे थर पर इस सूले अग-जग-मरुषल में ढरक बहो मेरे रस निझर ! } केद्रीय कारागार बरेली दिनांक १ नवम्बर १९४

  • शिजिनी=म यचा अजगय-प्रभु धनुष किमय-यशमय

शिवलित जल सिंचित प्रलम्नुषा एक प्रकार की अप्सरा । ३