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रश्मि रेखा मम कल्पना गगन मे फहरी मेरे पछी की पाँखे तुम्हें विफल लख भर आई हैं उसकी स्मृति रूपा आँखे तव उपचार भाव ये मेरे किमि तव सेषा-रस चाखें? यही सोचकर निज मन ही मन मम मन-पछी सकुषाया प्रिय तव खेद स्वेद हरने को मन विहन मम अकुलाया ! केन्द्रीय कारागार बरेली दिनांक ६ अगस्त १६४