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शिशु-सम्बन्धिनी-रचना


जो कवि और महाकवि होते हैं वे प्रकृति के हरेक कमरे में प्रवेश करने का जन्मसिद्ध अधिकार ले कर आते हैं। वे प्रकृति की प्रत्येक भूमि पर—जनाना महल में भी बेघड़क चले जाते हैं। प्रकृति को उन पर अविश्वास नहीं। वह उन्हें अपना बहुत ही सच्चरित्र और सुशील बच्चा समझती है, उनसे उसे किसी अनर्थ का भय नहीं। प्रकृति के जिस यथार्थ इतिहास के लिखने का अधिकार ले कर वे आते हैं, उसे वह उनसे छिपा भी नहीं सकती। कारण, वह जानती है, इस पर्दा-सिस्टम का परिणाम उसके लिये अच्छा न होगा। क्योंकि उस तरह संसार से उसकी पूजा उठ जायगी। यही कारण है कि जड़ और चेतन, सबकी प्रकृति कवि को अपना स्वरूप दिखा देती है। वे दर्पन हैं और प्रकृति का प्रत्येक विषय उन पर पड़ने वाला सच्चा बिम्ब है।

बच्चों के लिये, बच्चों ही के स्वभाव की बहुत-सी कविताएँ महाकवि ने लिखी हैं। उनकी ये कविताएँ पढ़ कर बच्चों ही की तरह हृदय में एक अपार आनन्द उमड़ चलता है। दूसरी बात यह कि भाषा का संगठन भी महाकवि ने वैसा ही किया जैसा अक्सर बच्चों की भाषा में पाया जाता है। इन कविताओं में एक दूसरे ढंग की किन्तु बहुत ही सुहावनी और मनमोहिनी प्रतिभा का विकास देख पड़ता है। इसकी भाषा को तो जितनी भी प्रशंसा हो थोड़ी है। जान पड़ता है, एक बच्चा बोल रहा है। देखिये विषय है, 'ज्योतिषशास्त्र', परन्तु यह पण्डितों का 'ज्योतिष-शास्त्र' नहीं, यह बच्चों की ज्योति है। महाकवि लिखते हैं— ,