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रवीन्द्र कविता-कानन
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यह शिक्षा तो नौकरों की ही संख्या बढ़ा सकेगी। इस समय के विचारपूर्ण लेखों में उन्होंने इस सम्बन्ध में लिखा भी है। जितने वर्तमान आन्दोलन हो रहे हैं, इनमे देश को उन्नतिशील करने के अनेक आन्दोलनों पर पहले ही रवीन्द्रनाथ लिख चुके हैं, परन्तु आज उनसे वे अलग कर दिये जाते हैं। इन दिनों जातीय शिक्षा को जो महत्व दिया जा रहा है और जिसके लिये जितने ही राष्ट्रीय स्कूल खुल रहे हैं, इस प्रसंग पर बहुत पहले ही रवीन्द्रनाथ लिख चुके हैं। दूरदर्शिता रवीन्द्रनाथ में हद दर्जे की थी। उनकी प्रखर दृष्टि जिस तरह सौन्दर्य की कुछ बातों का आविष्कार कर लेती, उसी तरह दूरस्थित भविष्य के सूक्ष्मातिसूक्ष्म विषयो को भी वह प्रत्यक्ष कर लेती थी। रवीन्द्रनाथ केवल कवि ही नहीं, वे एक ऊँचे दर्जे के दार्शनिक भी है। यह रवीन्द्रनाथ का साधना-समय था। इस समय के लिये साधना के अंगरेजी व्याख्यानों में रवीन्द्रनाथ की दूरदर्शिता के अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। 'भारती' में इन व्याख्यानों का अनुवाद लगातार निकलता और 'भारती' से अन्य पत्रिकाओं में भी उद्धत हुआ करता था। इस समय रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा सर्वतोमुखी हो रही थी। वे कविता तो करते ही थे, राजनीतिक और दार्शनिक भावनाओं के भी केन्द्र हो रहे थे।

जमींदारी का काम करते समय प्राकृतिक आनन्द रवीन्द्रनाथ को खूब मिलता था। इनकी जमींदारी एक जगह पर नहीं थी। रवीन्द्रनाथ ने अपने एक प्रबन्ध में, हाल ही में लिखा है, उनकी जमींदारी तीन जिलों में है। हिस्से में बँटी रहने के कारण बोट (छप्पर वाली नाव) पर सवार होकर प्रकृति के मनोहर दृश्यों का अन्तरंग आनन्द प्राप्त करने का इन्हें खासा सुयोग मिल गया। अधिकांश समय पद्मा के विशाल वक्षःस्थल पर व्यतीत होता था। नदी पर रवीन्द्रनाथ की कविताएं भी बहुत-सी है और सब एक से एक बढ़ कर।

जमींदारी का काम ले कर सर्वसाधारण से मिलने का मौका भी रवीन्द्रनाथ को मिला। वे पहले भी मनुष्य-प्रकृति का निरीक्षण किया करते थे। अपने जोड़ासाँको भवन से लोगों को अनेक प्रकार से नहाते हुए देख कर उन्हें बड़ा आनन्द मिलता था। इस विषय पर वह स्वयं लिख चुके हैं। उसी मकान के इधर-उधर झोपड़ों के रहने वाले निर्धन गृहस्थों का व्यवहार, उनका पारस्परिक आदान-प्रदान, उनकी दिनचर्या आदि देख कर उनके जीवन पर चुपचाप एकान्त में वे विचार किया करते थे। परन्तु यहाँ उन्हें व्यक्तिगत रूप से गरीब किसानो