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रवीन्द्र-कविता-कानन
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(संगीत—६)

"हेला फेला सारा वेला ए की खेला आपन सने ॥१॥
एई बातासे फूलेर बासे मुख खानी कार पड़े मने ॥२॥
आंखिर काछे बेड़ाय भासि,
के जाने गो काहार हासि,
दुटी फोंटा नयन सलिल रेखे जाय एई नयन कोने ॥३॥
कोन छायाते कोन उदासी
दूरे बाजाय अलस बांशी,
मने हय कार मनेर वेदना केंदे बेड़ाय बांसीर गाने ॥४॥
सारा दिन गांथी गान;
कारे चाहि गाहे प्राण,
तरु तले छायार
मतन बसे आली फुल बने ॥५॥

अर्थ:—'सब समय हृदय में विरक्त के ही भाव बने रहते हैं, यह अपने साथ खेल हो रहा है? ॥१॥ इस बातास में, फूलों की सुबास के साथ जिसकी याद आती है, वह मुख किसका है? ॥२॥ आँखों के आगे वह तैरती फिरने वाली किसकी हँसी है जो दो बूंद आँसू इन आँखों के कोने में रख जाया करती है? ॥३॥ वह उदासीन कौन है—दूर न जाने किस छाया में अलग भाव से बसी बजा रहा है, जी में आता है—हो न हो यह किसी के मन की वेदना होगी-बांसुरी के गीत के साय रोती फिर रही है ॥४॥ दिन भर मैं संगीत की लड़ियाँ गूंथा करता हूँ,—क्यो —किसे मेरा हृदय चाहता है?—किसके लिये गाया करता है?—इस पेड़ के नीचे छाया की तरह मैं किसके लिये फुलवाड़ी में बैठा हुआ? ॥५॥

(संगीत—७)

"आमाय बाँधबे यदि काजेर डोरे
केन पागल कर एमन कोरे? ॥१॥
बातास आने केन जानी
कोन गगनेर गोपन वाणी
पराण खानी देय जे भरे ॥२॥
(पागल करो एमन कोरे ॥)