पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/१२४

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१२० रवीन्द्र-कविता-कानन अदर्शन को शतयुगो के बराबर दीर्घ समझेगी, यह तुम समझे हुए हो (१३) । ओ वर-ओ मित्र ! तुम जानते हो, धूल में बैठी हुई यह बाला तुम्हारों ही वधू है (१४)। इसी के लिये निर्जन भवन में तुमने रत्नों से आसन सजा रखा है और सोने के पात्र में नन्दन वन की मधु भर घर रख दी है (१५) । यहाँ हमें अच्छी तरह मालूम हो जाता है कि महाकवि रवीन्द्रनाथ किस तरह चित्र का अवलोकन करते हैं, किम हृदय के भीतर की बातों को समझते और शब्दों में उसकी यथार्थ मूर्ति उतार लेते हैं । बालिका वधू और उसके पति के देव-भावों को किस खूबी से चित्रित किया है--साद्यन्त स्वाभाविक और साधान्त मनोहर ! शृगार की एक कविता महाकवि की और बड़ी सुन्दर है, नाम है 'रात्रे ओ प्रभाते' । इसमें युवक पति और युवती पत्नी के निश्छल प्रेम का प्रतिबिम्ब पड़ता है- मधुयामिनीते ज्योत्स्नानिशीथे कुजकानने सुखे फेनिलोप्तछल यौवन सुरा घरेछि तोमार मुखे । (१) तुमी चेये मोर आँखीं परे धीरे पात्र लयेछो करे हेसे करियाछी पान चुम्बनभरा सरस बिम्बाधरे कलि मधुयामिनीते ज्योत्स्नानिशीथे मधुर आवेश भरे । (२) तब अवगुण्ठन खानि आमी केड़े रेखेछिनु टानि आमी केड़े रखेछिनु बक्षे तोमार कमल-कोमल पाणी । (३) भावे निमीलित तव नयन युगल मुख नाहीं छिलो वाणी । ( (४) आमी शिथिल करिया पाश खुले दियोछिनु केशराश;