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रवीन्द्र-कविता-कानन
१०१
 

पूबे हावा माठ पेरिये
जेमनी पड़लो आसी
बांस बागान सों-सो कोरे
बाजिये दिय बांसी—
अमी देख मा चेये
सकल माटी छेये
कोथा थेके उठलो जे फूल
एतो राशी राशी!
तुई जे भाविस ओरा केवल
अमनी जेनो फुल,
आमार मने हय मा तोदर
सेटा भारी भूल!
ओरा सब इस्कूलेर छेले
पुथी पत्र काखें
माटीर नीचे ओरा ओदेर
पाठशालाते थाके।
ओरा पड़ा करे
दुआर-बन्द घरे,
खेलते चाइले गुरु मशाय
दांड करिये राखे।
बोशेक जैष्टि मासके ओरा
दुपुर बेला कय
आषाढ़ होले आँधार कोरे
विकेल ओदेर हय।
डाल पालारा शब्द करे
घन बनेर माम
मेधेर डाके तखन ओदेर
साढ़े चारटे बाजे।
ओमनी छटी पेये
आसे सबाइ धेये,