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ललकति लोनी ल ललित कपोलनि काँ अधर अमोलनि बुलाक थलकति है। कहै रतनाकर रुचिर ग्रीव-सीव पाइ दुलरी दमकि दुलराइ दलकति है। अंग अंग आनंद तरंग की उमंग , आनन पै मंजु मुसुकानि छलकति है । फलकति काँधे चढ़ी चटक पिछौरी पीत हुलसि हिये पै बनमाल हलकति है ।।७६।। २८-१-३२ तेरौ रोस रुचिर सदोस हू है हेरन काँ लागी मन लालसा न नैकुंडगि जाति है। कहै रतनाकर रुखाई माहि मान हूँ की सहज सुभाव सरसाई खगि जाति है ॥ फीकी चितवनि हूँ न नीकी भाँति जानी जाति तामै लोल लोचन लुनाई लगि जाति है। कहति कछू जो कटु बानि हूँ अठान ठानि आनि अधरा सो मधुराई पगि जाति है ॥७॥ ५-२-३२ गंग-कछार के मंजुल बंजुल काक कोऊ महा मोद उफान। देखत प्राकृत सुंदरता पद प्राकृत ही के हिय ठिक ठाने ।। पाइ सुधा-सम बारि अघाइ न आपनी जोट कोऊ जग जाने। हंस कौँ हाँस मजूर मयूर कौँ कोइला कोकिला कौँ मन मानै ॥७८॥ ३२-५-२