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साजन लगे हैं साज सुखद सँजोगी-गन बाजन लगे हैं बाज विसद बधाई में । दंत लागे चाँपन बियोगी कहि हाय हंत संत लागे काँपन बसंत की अवाई मैं ॥ ३५॥ नाचत स्याम सदा इन पै तऊ ये तो रहैं दिखसाध मैं सानी । चाहति रूप को लाहु लहैं पै सहैं सुख संपति नित हानी ॥ है बिपरीत महा रतनाकर रीति परै इनकी नहि जानी । पानिप ही की तृषारत हैं तऊ ढारति हैं अँखियाँ नित पानी॥३६॥ ११-२-३१ फरति बिचार नाहि घाम छाहिँ हूँ को कछू चाहन-उमाह सौ अथाहनि भरी रहै। कहै रतनाकर सु रोकत रुकै न रंच टोकत सखीनि हूँ के बिलखि लरी रहै ॥ लटकि मुरेरे सौ करेरे कुच टेकि नैकुँ कान दिये आहट पै थानहिँ थरी रहै । जब ते निहारी लाल रावरी छटा री बाल तब तै अटारी आनि अटकि अरी रहै ॥३७॥ १०-२-३१ लाल पै गुलाल की चलाई राधिका जो मृठि झूठि वै परी सो कर-कंपन ते खोटी है। कहै रतनाकर सम्हारि पिचकारी उन प्यारी कुच-कोर कौं निहारि उत जोटी है।