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अच्छिनि-समच्छ गई छिति सौं अलच्छित है, लच्छ बनि लच्छमी बिपच्छिनि रिसाला को। कहै रतनाकर सुधाकर को बिंब बेधि, प्रान कियौ तुरत पयान सुर-साला कौ । अधरहिँ धारयौ धर धाइ जगधाइ जांनि, पावै धरा पीर ना सरीर बीर बाला कौ। इत ते उमंडि संडिया पै मुंडमाली आनि, मुंड मध्य-मंडन बनायौ मुंड-माला कौ ॥८॥