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सैखनि की सेखी झारही सौँ जरि छार भई, सूखे घट जीवन पठाननि अठानी के। कहै रतनाकर त्यौँ गलित गुमान भए, साहसीक सैयद सिपाह सुलतानी के॥ जागी ज्वाल-काँध सौँ चकाइ चकचाँधि परे, आँधि परे मुगल महान गोरकानो के। प्रबल प्रताप को ताप ताप दानी देखि, पानी गए उतरि मलेच्छनि कृपानी के ॥८॥ सूर-कुल-सूर महा प्रबल प्रताप सूर, चूर करिबे कौँ म्लेच्छ कूर प्रन लीन्या है। कहै रतनाकर विपत्तिनि की रेलारेल, भैलि झेलि मातभूमि-भक्ति-भाव भीन्यौ है ॥ बंस को सुभाव अरु नाम का प्रभाव थापि, दाप कै दिलीपति कौँ ताप दीह दीन्यौ है। घाट हलदी पै जुद्ध ठाटि अरि मेद पाटि, सारथ बिराट मेदपाट नाम कीन्या है ॥९॥ देस-ब्रत कठिन कठोर महा लोह-मयी, राजपूत-टेक पै बिवेक सौं बनाई है। कहै रतनाकर ददाई दाप-दीपति सौं, विषम विपत्ति-घन-घातनि गढ़ाई है।