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मुगल पठान की न घाँस धमकी साँ डरयौ, दीन्हो छाँडि कठिन कृपान छ्वाइ गर सौं । मानी मानसिंह को महान मान-हानी कर, प्रबल प्रताप ठान ठानी अकबर साँ॥५॥ रोजा औ नमाज हज्ज करि कै हजार हारे, ऐसी प्रथा पाई पेन पावन प्रनाली की। कई रतनाकर प्रताप के प्रताप तपैं, जैसी होति स्वच्छता बिपच्छिनि कुचाली की। वीररस-माती जब घूमै रंग- भू में आनि, प्रगटति पद्धति पुनीत करवाली की। काली करै किलकि कलोल स्रोन-कुंड माहि, म्लेच्छनि के मुंड माल होत मुंडमाली की ॥६॥ कुत असि सायक के फल सौँ अघाए इमि, पायक औ नायक सिपाह सुलतानी के। कहै रतनाकर रही न उठिबे की सक्ति, जित तित लोट परे लाडिले पठानी के। माँगत न पानी हूँ किए यौँ तृप्त जीवन साँ, गठि के प्रताप नए ठाठ मेहमानी के। घाट-हलदी सौँ जमपुर की बताइ बाट, म्लेच्छनि उतारयौ घाट कठिन कृपानी के ॥७॥