यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सैल तैं पसरि कर-निकर सुधाकर के, आनि जल-तल पै लखात लहकत हैं। कहै रतनाकर प्रभाकर प्रभा के दाम, छोरि छिति कछुक अकास ठहकत हैं ॥ राते अरबिंद पराग मकरंद जात, कैरव पै मंजुल मलिंद महकत है। अहकत आह के बराक चक्रवाक दाहि, चाहि चहुँ ओर साँ चकोर चहकत हैं ॥३॥ जानि नभनाथ को पयान सैन-मंदिर काँ, मंगलीक गान में दुजाली भूरि भूली है। कहै रतनाकर बिनोद चहुँ कोद बढ़यौ, कामिनी तरुनि पै प्रमोद-प्रभा झूली है । मोती-माल वारती दिगंगना उमंग भरी, तारा है अकास-अंगना सेो परै रूली है। पाची मुख सेत उत खेत चाँदनी है कियो, तूली साजि अंबर प्रतीची इत फूली है ॥४॥ आजु अति अमल अनूप सुख-रूप रची, सरद - निसामुख की सुखमा सुहाति है । कहै रतनाकर निसाकर दिवाकर की, एकै दुति दोऊ दिसि माहि दरसाति है ।।