यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बोलि उठे चकित सुरासुर जहाँ ही तहाँ, हा हा यह चीर है कै धीर बसुधा का है। कहै रतनाकर के अंबर दिगंबर को, कैधौं परपंच को पसार बिधिना को है ॥ कैधौँ सेसनाग की असेस कंचुली है यह, कैधौँ ढंग गंग की अभंग महिमा का है। कैयौं द्रौपदी की करुना का बरुनालय है, पारावार कैधौं यह कान्ह की कृपा का है ॥८॥ धरम-सपूत धरमध्वज रहे हैं बनि, पारथ सकल पुरुषारथ बिसारे हैं। कहै रतनाकर असीम बल भीम हारे, सूके सहदेव भए नकुल नकारे हैं । भीषम औ द्रोनहूँ निहारि मौन धारि रहे, माष नाहि ताकी ये तो बिबस बिचारे हैं। सालत यहै के हाथ हालत न रावरौ हू, मानौ आप नाहि दुख देखत हमारे हैं ॥९॥ अंबर लौँ अंबर अनंत द्रौपदी को देखि, सकल सभा की प्रतिभा यौँ भई दंग है। कोऊ कहै अंध-भूप-मोह-अंध नासन काँ, चारु चंद्रिका की चली चादर अभंग है ॥