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तारे साठ सहस कुमार जे सगरवारे, तिन अपराधनि की गनना न भारी है। कहै रतनाकर उधारे जन जेते और, तिनमैं न कोऊ ऐसौ बिदित विकारी है। याही हेत देत हैं चिताए गंग चेत धरौ, धसकि न जाइ धरा धाक जो तिहारी है। लीजै करि सँभरि तयारी मनवारी सबै, पारी अबकै तौ अति विकट हमारी है ॥५२॥