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देति हमैं सीख सिखि आई सो कहाँ सौं कहौ. सीखी सुनी नीति की प्रतीति नहि पेखें हम । कहै रतनाकर रतन रूप औषध को, जानत प्रभाव जो न तासौँ कहा रेखें हम ॥ प्रानहूँ तँ प्यारी तौ प्रमानै कुलकानि पर, वह मुसकानि कानि हूँ तँ प्रिय लेखें हम । देखी जिन नाहिँ तिन्हैं देखत दिखाऐं कहा, देखि कै न देखें फेरि नैकु तिन्हैं देखें हम ॥९१॥ आइ समुझावति तू हाय हमकौं है कहा, ल्याइ कै मिलाइ किन नंद-दुलरा दै तू । कहै रतनाकर चहति आँस रोकन तौ, वाही पद-पंकज की रज कजरा दै तू ॥ नाइनि तिहारे गुन गायन करौंगी नित, पाइ परौं अंक बल-भायहिँ भरा दैतू । सोचन लगी है कहा मरति सकोचनि तो, हरि के हमारे एक लोचन करा दै तू ॥९२॥ देखत हमारी हूँ दसा न इठिलानि माहि, आपनी तौ बानि ना बिलोकत अठानि मैं । कहै रतनाकर उपाइ ना बसाइ कछु, जासौ लखा भाइ-भेद उभय दिसानि मैं ॥