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कसी कुसुंभी कठिन कंचुकी उत मलमल की, कलित कोर चहुँ ओर प्रभा-पूिरत झलमल की। लसत लाल बागी बनाव-जुत इत अति नीका, बन्यौ काम जामैं दुति-दाम कामदानी का ॥ ४२ ॥ सारी जरतारी भारी उत चटापटी की, लागी जामै गोट तमामी पटापटी की। आँचल पल्लव, औ तुरंज सब जगमग-कारी, पीत सेत कल किरन तरनि-मद-मर्दनहारी॥४३॥ पंचरंग-उपव्यौ दुपटौ करेब का त्यौँ इत, बेल कारचोबी जामै सोहति मोहति चित । झलमलाति छोरनि झीनी झालर मुकेस की, फवति पूँदननि मैं मुकतावलि मोल वेस की ॥ ४४ ॥ चारु चंद्रिका फूलनि की साहति उत भाई, लालन की मति जाहि निरखि बिन मोल विकाई । सिर चढ़ि इत इतरात मुकुट त्यौँ फूलनि ही को, बरबस बस करि लेनहार चित चतुर लली को ॥ ४५ ॥ महमहाति उत फूलनि सौँ गूथित बर बेनी, रूप-कल्पलतिका-कुसुमावलि सी सुख-देनी । लोल सुडौल सुमन-सिरजित झूमक इत झूमत, हुलसत बिलसत गोल अमोल कपोलनि चूमत ॥ ४६॥ 7