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कोऊ बेद-बिहित विधाननि बनाइ त्रान, कोऊ मिस आन ठानि बानक सिला ही को। जादूगर छैल की अचूक चितवनि-सेल, भेलिबे कौँ चाहियै करेजा राधिका ही कौ ॥६८॥ हारी हाथ जोरि मानि मन्नत करोर हारी, तोरि हारौं तृन कै कछू सौ दया भीजिये । जासौं मन-भावन कौं सुख-सरसावन कौँ, जीवन जुड़ावन कौं अंक भरि लीजियै ॥ आपने अठान की रहयो है राखि रूई कान, करत न कानि कछू याही दुख छीजिये । बिधना सुनत काहू बिधि ना हमारी हाय, बिधि ना बनति कोऊ राम कहा कीजिये ॥६९॥ जब तँ बिलोक्यौ बाल लाल बन-कुंजनि मैं, तब तैं अनंग की तरंग उमगति है। कहै रतनाकर न जागति न सोवति है, जागत औ सोवत मैं सावति जगति है । डूबी दिन रैन रहै कान्ह-ध्यान-बारिधि मैं, तौहूँ बिरहागिनि की दाह सौं दगति है। धृरि परौ एरी इहि नेह दईमारे पर, जाकी लाग पाइ आग पानी मैं लगति है ॥७०॥